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Wednesday, October 16, 2019

ब्रजभाषा/अनुवाद-01 (लघुकथा - हिस्से का दूध, लेखक - श्री मधुदीप गुप्ता, अनुवादक - रजनीश दीक्षित)

ब्रजभाषा/अनुवाद-01

शीर्षक : हींसा_को_दूध

ओंगानींदी आँखिन कों मलत भई बा अपयें पति के जोरें आइकें बैठ गई। बू दिवार के सहारें बीड़ी के कश लै रहो हतो।

     "सो गयो मुन्ना...?"
     "हओ! लेव दूध पी लेव।" सिल्वर को पुरानो गिलास बाने बढ़ाओ।
     "हुंउँ, मुन्ना के लानें धर देव। उठिहे तो...।" बू गिलास को नाप सो रहो तो।
      "बाय, हम अपओं दूध पिवाय दिंगे।" बा निश्चिंत हती।
      "पगलो, बीड़ी के ऊपर चाय-दूध नईं पिओ जात। तुम पी लेव।" बाने बहाना बनायकें दूध और बई के तनें कर दओ।
       तभैं...
       बाहर सें हवा के संगें एक आवाज बाके कानन में टकराई। बाकी आंखें कुर्ता की खाली खलीता में घुस गईं।
       "सुनो, नैक चाय चढ़ाय देव।"
        पत्नी सें जा कहती बेरा बाको गरो बैठ गओ।

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