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Wednesday, September 11, 2019

'अपनी समझ' के तहत "पुस्तक समीक्षा" - विभाजन की त्रासदी

#पुस्तक - विभाजन की त्रासदी
#लेखक - मुनीश त्रिपाठी जी
#पेज - 199
#कीमत - ₹ 400/- लेकिन अमेज़ॉन/फ्लिपकार्ट पर रियायती कीमत पर डाकखर्च सहित उपलब्ध है।
#प्रकार - सजिल्द
#प्रकाशन - प्रभात प्रकाशन के सह प्रकाशक विद्या विकास एकेडमी, नई दिल्ली द्वारा।

विभाजन की त्रासदी
मेरे प्रिय अनुज, मित्र और पत्रकारिता को अपना पेशा बना चुके मुनीश त्रिपाठी जी द्वारा लिखित पुस्तक "विभाजन की त्रासदी" पढ़ने का सुअवसर मिला।
सबसे बड़ी प्रसन्नता तो इस बात की है कि उन्होंने इस जटिल विषय को लिया। यह विषय निश्चित रूप से न केवल लिखने की दृष्टि से व्यापक है अपितु इसमें दर्ज किस्से भी बड़े पेचीदे हैं। पेचीदे इसलिए कि इसमें जो भी तथ्य दर्ज हैं, पढ़ने के बाद उसकी सत्यता का प्रमाणन हर पाठक के मन मस्तिष्क में घूमता है। इसके लिए मुनीश जी की जितनी तारीफ की जाए उतनी कम है। क्योंकि उन्होंने प्रमाणन के सबूत के तौर पर #202 पुस्तकों, आलेखों आदि का संदर्भ दिया है। संदर्भों के व्यापक संकलन को देखकर ही अंदाज लगाया जा सकता है कि इस विषय को पुस्तक के रूप में लाने के लिए उन्होंने कितना श्रम किया होगा।
मुनीश जी ने इस पुस्तक को 'भूमिका' के बाद अनुक्रमणिका के अंतर्गत चार भागों में लिखा है और अंत में विस्तार से "टिप्पणियाँ एवं संदर्भ" भाग में संदर्भ लिखे हैं।
सबसे खास बात यह भी है कि संदर्भों के लिए संबंधित पुस्तकें, आलेख, पत्र-पत्रिकाएं आदि इकट्ठी करने के बाद भी उनको पाठकों के लिए सिलसिलेवार प्रस्तुत करना भी श्रमसाध्य कार्य है। इसका नमूना पाठकों को इस पुस्तक को पढ़ने के बाद ही मिल पायेगा। वैसे तो इस विषय पर पूर्व में इतिहासकारों ने बहुत कुछ लिखा है, बहुत पुस्तकें भी आयी हैं लेकिन मेरे ख्याल से हमारी पीढ़ी के दौर के किसी लेखक द्वारा लिखी गई यह पुस्तक अपने आप में अनूठी है। इसमें जहाँ पुस्तकों में तथ्य तो पुराने हैं लेकिन लेखक की सोच नई और समसामयिक है जिससे पाठक इसे पढ़ते समय अवश्य महसूस करेंगे।
पुस्तक का आवरण आकर्षक है। मुद्रण भी अच्छा है लेकिन वर्तनी की अशुद्धियाँ जहाँ-तहाँ मिल जाती हैं। ऐसा मेरा व्यक्तिगत अनुभव है कि यह आजकल के प्रकाशकों के साथ यह आम समस्या है। इसे प्रकाशकों को ध्यान में लेना चाहिए और लेखकों को भी प्रकाशकों के साथ इस मुद्दे पर बात करनी चाहिए।
स्वभाव से सरल, सच्चे और स्पष्टवादी मुनीश जी की यह शोधपरक पुस्तक पाठकों में पहले ही काफी प्रसिद्धि पा चुकी है। आशा है कि यह समय के साथ अपना विस्तार करती रहेगी। इस पुस्तक की सफलता के लिए मुनीश जी को बहुत बधाई और शुभकामनाएँ।

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