पुस्तक - उसके हिस्से का प्यार (कहानी संग्रह)
प्रकाशक - व्हाइट फाल्कोन पब्लिशिंग
कीमत - ₹ 199/- (अमेजन पर 25% रियायत पर रु. 150/-में उपलब्ध)
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....आशीष दलाल, नाम तो सुना होगा। जी, यही है नाम 'उसके हिस्से का प्यार' के लेखक का। आशीष दलाल जी (संपर्क - +91 9712748824) का यह प्रथम कहानी संग्रह है। 129 पेज के इस कहानी- संग्रह में आशीष जी ने कहानियों के 17 मोतियों को पिरोया है जो एक से बढ़कर एक चमक रखते हैं। इसकी भूमिका कहानी लेखन महाविद्यालय, अम्बाला की निदेशक और मासिक पत्रिका शुभ तारिका की सम्पादक आदरणीया श्रीमती उर्मि कृष्ण जी ने लिखी है।
संग्रह में लिखी हर कहानी घर-घर की कहानी सी प्रतीत होती है। आजकल समाज में व्याप्त घटनाओं को आशीष जी ने अपनी कलम से रोचक बनाते हुए कहानियों का रूप दिया है। इन कहानियों में घर-परिवार, समाज, उससे जुड़े लोग, उनके आपसी सम्बन्ध और उन समबन्धों में व्याप्त प्रेम, द्वेष, आत्मीयता, घृणा, दया आदि भावनाओं के समीकरणों को बड़ी रोचकता से पाठकों तक पहुँचाया है।
जहाँ, पुस्तक का शीर्षक 'उसके हिस्से का प्यार' पाठकों को सहज ही अपनी ओर आकर्षित करता है, वहीं कहानियों के शीर्षक भी पाठकों को कहानियां पढ़ने के लिए प्रेरित करते हैं। 17 कहानियों में से एक कहानी का शीर्षक ही 'उसके हिस्से का प्यार' है। अन्य शीर्षकों में - एक रात की मुलाकात, लव मैरिज, अग्नि परीक्षा, देवकी, अपना, बेटा, दूसरा पुरुष, वापसी, दूसरा मौका, अंतिम संस्कार, फैसला, दर, जीवनदान, कर्ज, सम्बन्ध, तुम्हारा हिस्सा, और वजूद जैसे आकर्षक और प्रभावशाली शीर्षक पुस्तक को वजनी बनाते हैं। पुस्तक का आवरण पृष्ठ बहुत ही मनोहारी है जो कि इसके शीर्षक 'उसके हिस्से का प्यार' से गलबहियां करता सा लगता है। शीर्षक और आवरण पृष्ठ एक-दूसरे के पूरक हैं। पुस्तक की छपाई और आकार भी बहुत सुन्दर हैं। जहाँ इतनी सारी खूबियाँ हैं वहीं पुस्तक में कहीं-कहीं वर्तनी की अशुद्धियाँ भी हैं जिसे प्रकाशक को ध्यान में रखना चाहिए था।
आशीष जी को उनकी इस पुस्तक के लिए बहुत बधाई और शुभकामनाएँ।
इच्छुक पाठक, लेखक, मित्र इस पुस्तक को निम्नलिखित लिंक से प्राप्त कर सकते हैं।
एक पाठक की प्रतिक्रिया
चार दिन पहले......यही कोई देर शाम, आठ बजे का समय। फोन की घंटी बजी। स्क्रीन पर नजर गई तो देखा... +9122xxxxxxxx मुम्बई का नम्बर।
हेलो...
केन आई टॉक टू मिस्टर दीक्षित?
यस, यू आर टॉकिंग टू रजनीश दीक्षित।
सर, आप दिसंबर के पहले हफ्ते मुम्बई आये थे और हमारे होटल में रुके थे।
जी, हाँ। बताइये, क्या हुआ?
सर, हुआ कुछ नहीं। वो आपकी एक किताब रह गयी है यहाँ, "उसके हिस्से का प्यार"।
क्या??, वो किताब आपके पास है? लेकिन अब तो एक महीने से ज्यादा हो रहा है और आप अब बता रहे हैं? मैं तो परेशान था कि कहाँ गुम हुई?
सॉरी सर, वो मैंने पढ़ने के लिये रख ली थी। आज ही पढ़कर खत्म की। बहुत अच्छी कहानियां हैं, सर। सोचा, अब आपको लौटा दूँ।
ठीक है। आप भेज दीजिये। मैं कोरियर खर्च दे दूँगा।
सर। मैं भेज देता हूँ, कोरियर से। आपका पता वही है न, जो रजिस्टर में लिखवाया था।
हाँ, वही है। ठीक है जल्दी भेजना। धन्यवाद।
...... और यह पुस्तक दो दिन पहले ही दुबारा प्राप्त हुई।
** ** ** ** तो, अब शायद आपको पता चल ही गया होगा कि "उसके हिस्से के प्यार" की समीक्षा में आखिर इतनी देर क्यों लगी? मैंने यह किताब डेढ़ बार पढ़ी है। मतलब आधी पहले और फिर पूरी अब।......आखिर कहांनियाँ अच्छी जो इतनी हैं और इसकी समीक्षा भी लिखनी बाकी थी।