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Tuesday, July 23, 2019

केवल तुम्हारे लिए

''अपनी समझ' के तहत "पुस्तक समीक्षा"
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काव्य संग्रह - "केवल तुम्हारे लिए"
रचनाकार - डॉ क्षमा सिसौदिया
प्रकाशक - श्रद्धा जेम्स रॉबिन्स 
मूल्य: ₹ २००/- 

....अक्सर हम किताबें मुख्य पृष्ठ से पढ़ना शुरू करते हैं लेकिन कुछ संयोग ऐसा बना कि मैंने "केवल तुम्हारे लिए" का आखिरी आवरण पृष्ठ सबसे पहले पढ़ा। अच्छा ही हुआ जो पहले यह पढ़ लिया नहीं तो पूरी किताब पढ़ने के बाद ही पता चलता कि क्षमा जी का इस खूबसूरत पुस्तक को लिखने और इसका यह नाम रखने के पीछे क्या कारण रहे होंगे। क्षमा जी के विस्तृत परिचय के साथ उसमें निहित कारण पता चले और रही सही कसर पूरी कर दी इसमें लगे हुए बुक मार्क ने। क्षमा जी ने बुक मार्क में अपने पति की तस्वीर लगाई है। दरअसल जब उन्होंने पहली बार पति से अपने लिखने की इच्छा जाहिर की थी तो उन्होंने कहा था कि 'लिखिये, मगर नाम मेरा लिखना'। हालांकि उस समय तो लेखिका ने जैसे लिखना बंद ही कर दिया था पर अंतराल के बाद जब लिखा तो इस पुस्तक का नाम ही 'केवल तुम्हारे लिए' रख दिया। लेखिका की इस स्वीकारोक्ति से ही पता चलता है कि वह कितनी संवेदनशील हैं।


इसी तरह पुस्तक के आवरण के रंग-रूप, साज-सज्जा को समझ पाना भी मेरे लिए थोड़ा सा पहेली जैसा था। आवरण पृष्ठ के स्याह, श्वेत-श्याम रंग में छुपे 'गुलाब के पुष्प, इबादत की मुद्रा में एक जोड़ी हाथ और साथ में कलम' से पहले तो कुछ आभास न कर पाया लेकिन जैसे-जैसे उनकी रचनाओं से रूबरू होता गया, परतें खुलने लगीं। आकर्षक जिल्द और उच्च गुणवत्ता के कागजों पर मुद्रित ८८ पेज के गुलदस्ते में क्षमा जी ने ६ क्षणिकाओं सहित ६० रंग-बिरंगी रचनाओं को गूंथा है। उनकी लगभग हर रचना में एक पीड़ा सी है, समाज के दिए गए दंशों के कारण क्षुब्धता है, आक्रोश है, एक दर्द सा है और दर्द के साथ उम्मीद, हिम्मत और साहस से आगे बढ़ने की सीख भी है। क्षमा जी ने जैसे स्त्री मन की सारी व्यथाओं, मनःस्थितियों और जीवन के विभिन्न पड़ावों पर मिलने वाले कुछ चरित्रों, अनुभवों, उनसे मिली सीखों, आदि को अपनी किताब में बड़ी कुशलता से उकेरा है। उनकी हर रचना पाठक को थोड़ा रुककर, ठहरकर सोचने और मंथन करने पर मजबूर कर देती है। उन्होंने नारी मन को बहुत करीब से पढ़ा है। उनकी हर रचना से उनके सरल और विचारशील व्यक्तित्व का भी परिचय मिलता है। उनकी अधिकतर रचनाएँ अतुकांत हैं जो कि आधुनिक काव्य की एक प्रचिलित और स्वीकार्य शैली है। रचनाकार ने इस पुस्तक में हिन्दी के बहुत ही सरल और आम बोलचाल के शब्दों का प्रयोग किया है जो पाठकों को जल्दी ही रचनाओं की आत्मा तक पहुंचा देता है। इसी प्रकार रचनाओं के शीर्षक बहुत ही चिर परिचित हैं।   
  
'केवल तुम्हारे लिए' की सुन्दर भूमिका लेखिका के गुरुदेव प्रो. हरमोहन बुधौलिया जी ने लिखी है। आत्मकथ्य के आभारी उद्बोधन के बाद शुरू होती है उनकी लेखनी की बाजीगरी। उनकी प्रथम रचना "प्रार्थना" में 'तेरे साथ रोऊँ, तेरे साथ हँसू, तुम मेरे साथ रहना मेरे संग प्रभु।' जैसे ईश्वर के साथ साक्षात बात हो रही है। असल में यही है प्रार्थना, यही है इबादत।

जैसे जैसे आगे बढ़ता हूँ, 'श्रद्धांजलि' और 'हमराही' दो रचनायें, दोनों एक दूसरे की पूरक सी लगती हैं। जैसे कोई डर है प्रिय से दूर होने का -

"उठती है सिसकियाँ जब कलेजे को चीरती, कौन सुन पाता है उसके दर्द की आवाज।" 

दर्द का अहसास भी है और अगले पल सांत्वना भी है - 'तुम ही वीर और तुम ही हो वीरांगना नारी।' 

अब पाठक थोड़ा शांत हो जाता है। उसे लगा, नहीं, उसे दर्द तो है पर हिम्मत भी है। अगली रचनायें जहाँ "भ्रूण हत्या' और 'समझौता' बालिका और नारी मन की पीड़ा बताती हैं वहीं अगले ही पल 'जिंदगी' में भी दुःख के बाद "ओस की वो बून्द नहीं, जो धूप आने पर चली जाए" बड़ी गंभीर बात कहती प्रतीत होती है। दूसरों के फैसलों से 'फैसला' में एतराज भी है और 'आंसू' में इसे ताकत बनाने की सलाह भी है। 'नारी' में लिखा कि स्त्री क्या है? "उसने ठान लिया है, मान लिया है, चट्टानों से टकराना जान लिया है।" 

फिर नारी मन की 'परिभाषा' गढ़ती और निरंतर 'कोशिश' में नजरिये को सकारात्मक करने की बात कहती हैं। 'वक्त' के 'दर्द' को 'कलम' से 'बदलाव' का सन्देश देती चार सशक्त कविताओं की अच्छी कड़ी बन पड़ी है। अगली कविता में 'नदी' को आवाज बनाकर उसके साथ बहने की बात है तो 'झरोखा' में फिर सन्देश है कि 'दुःख की अंधेरी रात ढली, सुख का सुखद प्रभात फिर आया' - महिलाओं के लिए अच्छा और सुखद सन्देश है। थोड़ा और आगे बढ़े तो 'शुतुरमुर्ग' में स्त्रियों के सम्मान बचाने की बात है तो 'पलायन' में जिंदगी के झंझावातों से घबराकर न भागने की बात है। 'हारकर पलायन कर जाना जिंदगी नहीं, रौंदकर विपत्तियों को जीना है जिंदगी।' 

'संगीत' में उसके सकारात्मक गुणों की बात है तो 'खत','बिरहिन', 'गजल', 'वादा', 'सावन' और 'खारा प्यार'  में प्रेमी/साथी से क्रमशः ग़लतफ़हमी, जुदाई और शिकायतों की गठरियां हैं। 'शब्द' और 'कविता' में व्यक्ति की सोच और उसके दूसरों पर प्रभाव का आकलन है। 'सम्बल' में जिंदगी को कोशिशों का नाम दिया है तो 'उड़ान', 'दुनिया' और 'तृष्णा' में फिर से मुश्किलों से डटकर जूझने की बात कही है। 'संपत्ति' में असली धन का अर्थ समझाया है तो 'दूरदर्शिता' में सजग रहते हुए समस्याओं से निजात पाने की सीख है। 'प्रकृति' में उसके साथ हो रहे अतिक्रमण की समस्या की  चिंता है तो 'नैराश्य' और 'उम्मीद' में निराशा से आशा में जीने की बातें हैं। 'जिद्द' में बुराइयों से दूर रहने की जिद है तो 'मोल' में एकबार फिर से आत्मचिंतन कर अपना मूल्य पहचानने की बात है। 'आश्चर्य' में जीवन में आये अनेक बदलावों से अचंभित होने का जिक्र है तो 'ख्वाहिश' में आसमां छूने की आशावादी बातें हैं। 'माँ' में माँ की महिमा का वर्णन है तो 'शाम' में दिनभर की तपिश के बाद की सुखद तस्वीर है। 'कल्पना' और 'मुस्कान' में एक बार फिर से नई उम्मीद के साथ जिंदगी जीने के सुखद फलसफे हैं। 'मित्र' में अवसरवादी मित्रों की बातें हैं, 'स्वप्न' में नारी मन के विचारों को हकीकत से रूबरू कराती चर्चा है और 'ख़ामोशी' व 'मौन' जैसी कविताओं में अपनी पीड़ाओं को सहेजती पंक्तियाँ हैं। 

'अनोखी कार' में दूसरों की ईर्ष्या-द्वेष पर व्यंग तो 'रिश्ते' में महिला को पुरुष के अत्याचार से सचेत कराती सलाह भी है। 'कन्यादान' में बेटी की शादी में हमारी परम्पराओं की बात तो 'बेटियां' में बेटियों की खूबियां, 'मेरे पिता' में पिता-पुत्री के रिश्ते की वह तस्वीर जिसमे प्रेम भी है और पिता का अनुशासन भी है। 'कवि' में आदर्श कवि की परिभाषा तो 'अहसास' में एकबार फिर से नारी को स्वयं को पहचानने की बात कही है। यहाँ पता नहीं, कुछ त्रुटि है या और कुछ। कवितायें 'नारी' और 'अहसास' की कुछ पक्तियां दोनों रचनाओं में एक समान हैं। खैर.... 'चाहत' में प्रिय के साथ बीते सुखद समय को भुलाने की कोशिश है तो 'दृष्टिकोण' में सकारात्मक रहने की बात और जीवन के अंतिम सत्य 'मौत' में अपने-पराये और उनकी सोच से परिचय कराना है। 

अंत में ६ क्षणिकाएं हैं जिनमें मेहनतकश, गरीबी-अमीरी और उनमें निहित मनोभावों के सूक्ष्म चित्रण हैं।

अगर छोटी-मोटी वर्तनी की त्रुटियों, दो कविताओं में कुछ पंक्तियों की पुनरावृत्ति को नजरअंदाज किया जाए तो डॉ क्षमा जी का यह प्रथम काव्य संग्रह बहुत सुंदर बन पड़ा है। हालांकि कुछ रचनाओं में विषयों की समानता भी है लेकिन भिन्न शीर्षक और विन्यास से कहीं भी एकरसता नहीं आयी है जो कि रचनाकार की लेखन क्षमता की विविधता का परिचायक है। मुझे लगता है कि हर पाठक, खासकर महिलाएँ अपने आपको इन रचनाओं में किसी न किसी रूप में महसूस करेंगी। डॉ क्षमा जी को उनके इस काव्य संग्रह के लिए बहुत बधाई और शुभकामनाएँ। मुझे विश्वास है कि आगामी समय में पाठकों को उनके और भी संग्रहों को पढ़ने का लाभ मिलेगा।

रजनीश दीक्षित


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